यूक्रेन युद्ध के बाद व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा सिर्फ़ एक औपचारिक मुलाकात नहीं, बल्कि भारत-रूस संबंधों के सबसे बड़े इम्तिहानों में से एक माना जा रहा है। एक तरफ़ रूस से रिकॉर्ड सस्ते तेल आयात का फायदा है, तो दूसरी तरफ़ अमेरिकी नाराज़गी और पश्चिमी प्रतिबंधों का दबाव। भारत को इस यात्रा में हर कदम बहुत सोच-समझकर रखना होगा। बड़ा सवाल यह है कि क्या दोनों देश अब भी उतने ही नज़दीक हैं जितने पहले थे, या बदलते वैश्विक समीकरणों ने उन्हें अपनी-अपनी रणनीति पर खेलने को मजबूर कर दिया है?
भारत की सबसे बड़ी उम्मीद: आर्थिक संतुलन
भारत के लिए पुतिन की यात्रा से सबसे बड़ी उम्मीद आर्थिक मोर्चे पर संतुलन बनाना है।
-
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा था: "हम रूस के साथ आर्थिक संतुलन बनाना चाहते हैं। हम रूस से बहुत कुछ खरीदते हैं (जैसे तेल) लेकिन बेचते कम हैं। इसे सुधारना हमारी प्राथमिकता है।"
-
दिलचस्प बात यह है कि क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने भी भारत की चिंता स्वीकारते हुए कहा कि रूस भारत से ज़्यादा सामान खरीदना चाहता है।
हालांकि, दोनों देशों की रणनीतिक प्राथमिकताएँ अलग-अलग दिख रही हैं: जहाँ भारतीय अधिकारी आर्थिक संतुलन को आगे बढ़ा रहे हैं, वहीं रूस के प्रवक्ता रक्षा मामलों (जैसे Su-57, S-400) को एजेंडे में खुलकर तवज्जो दे रहे हैं। दोनों मिलकर दुनिया के सामने एक संतुलित तस्वीर पेश कर रहे हैं।
🇮🇳 भारत के लिए इस समय क्या दाँव पर है?
भारत के लिए दाँव पर उसकी रणनीतिक स्वायत्तता और दीर्घकालिक सुरक्षा हित हैं। भारत को रूस की ज़रूरत निम्नलिखित कारणों से है:
-
सस्ता तेल और ऊर्जा सुरक्षा।
-
रक्षा प्रणालियाँ: S-400 की बची हुई डिलीवरी, परमाणु पनडुब्बी प्रोजेक्ट, Su-30MKI का अपग्रेड, और Su-57 जैसी फिफ्थ जनरेशन टेक्नोलॉजी पर बातचीत। यह इसलिए और ज़रूरी हो जाता है क्योंकि पाकिस्तान चीन से J-35 स्टेल्थ फाइटर ले रहा है।
-
संतुलन: भारत इस दौर में अमेरिका, यूरोप और रूस तीनों को संतुलित रखना चाहता है ताकि किसी एक पर निर्भरता न बढ़े।
🇷🇺 रूस के लिए क्यों ज़रूरी है यह दौरा?
रूस के लिए भारत पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंधों के बीच जीवनरेखा के समान है।
-
बाज़ार और सहयोग: रूस को पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच भारत जैसी बड़ी, भरोसेमंद अर्थव्यवस्था का सहयोग चाहिए।
-
दीर्घकालिक साझेदारी: हथियारों और तकनीक के संयुक्त उत्पादन से दीर्घकालिक साझेदारी सुनिश्चित करना।
साइलेंट डिप्लोमेसी की रणनीति
पूर्व विदेश सचिव शशांक के अनुसार, यह मुलाक़ात 'साइलेंट डिप्लोमेसी' की रणनीति है।
-
दबाव: यूक्रेन युद्ध से रूस पश्चिमी दबाव में है, और भारत अमेरिकी टैरिफ़ से प्रभावित है। ऐसे में दोनों को एक-दूसरे पर भरोसा चाहिए।
-
सतर्कता: दोनों देश इस रिश्ते को बहुत हाई-प्रोफाइल भी नहीं बनाना चाहते, ताकि अमेरिका नाराज़ न हो। इसलिए हो सकता है कि बड़े ऐलान कम हों और पुराने समझौतों में अपडेट पर ज़्यादा फोकस हो।
व्यापार असंतुलन की चिंता
2024-25 में भारत-रूस व्यापार $68.7 अरब तक पहुँचा, लेकिन इसमें भारी असंतुलन है। भारत का निर्यात केवल $4.9 अरब है, जबकि बाकी सब तेल, उर्वरक और पेट्रोलियम उत्पादों का आयात है।
-
भारत की माँग: भारत चाहता है कि रूस में दवाइयाँ, कृषि उत्पाद, उपभोक्ता सामान और भारतीय कार्यबल को आसानी से बाज़ार पहुँचे।
-
मुकाबला: इस मोर्चे पर भारत का सीधा मुकाबला चीन से है, जो पहले से ही रूसी बाज़ार पर हावी है।
साझेदारी की सबसे बड़ी समस्या रक्षा डिलीवरी में देरी (जैसे S-400 और परमाणु पनडुब्बी प्रोजेक्ट) बनी हुई है, जो रूस की युद्ध के कारण प्रभावित उत्पादन क्षमता को दर्शाती है।